
हमारे देश मे संसदीय लोकतंत्र आधी सदी से ज़्यादा पुराना है। इसकी बुनियाद एक ऐसे संविधान पर है जिसमे हर नागरिक को बराबर अधिकार दिया गया है। धर्म निरपेक्षता को बुनियादी सिद्धांत माना गया है, परन्तु आज हम देखते हैं कि सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों ने धर्म को ही अपना हथियार बना लिया है। इसी को मद्देनजर रखते हुए और लोकतंत्र को बचाने व हर समुदाय के लोगों को उनके हक़ दिलाने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र मरहूम सलीम पीरज़ादा साहब ने परचम पार्टी ऑफ इंडिया की नींव रखी।
13 अप्रैल 1903 को विकारुल मुलक ने मुसलमानों के सियासी मुस्तक़बिल की तामीर का जलसा अलीगढ़ के टाउन हॉल जिसको आज जवाहर भवन कहा जाता है वहाँ किया था, उसी की तर्ज़ पर ठीक उसके 100 साल बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ओल्ड बॉय मरहूम सलीम पीरज़ादा साहब ने परचम पार्टी ऑफ इंडिया ( पीपीआई ) की बुनियाद 13 अप्रैल 2003 को उसी जगह डाली और अपनी पूरी ज़िंदगी मुसलमानों के हक़ की लड़ाई लड़ते हुए वक़्फ़ कर दी,
पीपीआई को खड़ा करने का मकसद था कि मुस्लिम समुदाय की हैसियत से सियासी इकाई बन कर दूसरी क़ौमों के साथ हाथ से हाथ मिलाकर सियासी इक़तदार में बाइज़्ज़त तरीक़े से अपना हिस्सा हासिल कर सकें । देश के बाक़ी वो समुदाय जिनपर पर जात – बिरादरी के नाम पर होने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनका साथ दें और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वालों का मुकाबला करने के साथ साथ गंगा जमुनी तहजीब और देश के लोकतंत्र ( डेमोक्रेसी ) की हिफाज़त की जाए, परचम पार्टी ऑफ इंडिया एक ऐसे राजनीति विकल्प का नाम है, जो सैद्धांतिक रूप से परिपक्व और व्यवहारिक रूप से इतना चुस्त है कि देश की जनता के सभी वर्गों, समूहों और जातियों की आशा पर पूरा उतर सके।
यह एक सामान्य राजनीतिक दल नहीं हैं बल्कि राजनीति के सारे आयामों को अपने आप मे समाहित कर लेने वाला एक रचनात्मक सामाजिक आंदोलन है । इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य जनता का सशक्तिकरण है। जिस देश की जनता सम्पन्न और मज़बूत नहीं होती वह देश कभी सम्पन्न और शक्तिशाली नहीं बन सकता, क्योंकि देश केवल पहाड़ों और नदियो का नाम नहीं हैं बल्कि उसमे बसने वाले मनुष्यों की अभिलाषा का नाम है।