अपने अधिकार की प्रतीक्षा करता पर्यावरण

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जिस पर्यावरण में हम रहते हैं उस पर्यावरण ने हमें अमूल्य उपहारों से नवाजा है। खुबसूरत और खुशनुमा ज़मीं दी।हवा दी, जिसको हमें जीवित रखने का कर्तव्य सौंपा गया। पानी दिया जो हमें जीवित रहने के साथ-साथ तरोताजा रखता है। वनस्पतियों भेंट करीं।धरा दी , उससे उगने वाला अनाज दिया । जिसे खाकर हमारी आंखें खुली।अगिनत अमुल्य वस्तुएं हमें भेंट करीं है और बदले में हमने क्या दिया ?

—पर्यावरण का अर्थ—

पर्यावरण का शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है परि+आवरण और इसका मतलब कितना बड़ा है चारों- ओर से घेरे या ढकें हुए । पर्यावरण ने हमें समस्त समस्याओं से अपने आंचल से ढका हुआ है। हम सभी समस्याओं से महफूज़ है तो सिर्फ और सिर्फ पर्यावरण के कारण।

पर्यावरण की रक्षा स्वयं की सुरक्षा ——- हम तभी तक महफूज है जब तक हमारा पर्यावरण सलामत है। जब हम पर्यावरण की समस्त वस्तुओं का उपयोग करते हैं। तो इनकी देखभाल का जिम्मा कौन लेगा ? जिस तरह पर्यावरण हमें हर चीज को अपना कर्तव्य समझकर उपभोग करने के लिए देता है। उसी प्रकार हमारा भी कर्तव्य है कि हम उसकी हिफाजत करें।

प्रकृति कुछ भी मुफ्त नहीं देती ————- हमेशा याद रखिए , जब आपको किसी वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता होती है और वह आपके पास उपलब्ध ना हो । तब आप क्या करते हैं ! साधारण सी बात है आप अपने अड़ोसी-पड़ोसी से ही उधार लेंगे। फिर आपका कार्य होने के उपरांत आप उसे वापस भी देते होंगे।

ठीक इसी प्रकार से हमारा पर्यावरण हमें कुछ भी मुफ्त में नहीं देता है। जो हम सबसे बड़ी गलतफहमी में रहते हैं कि हमें हमारे पर्यावरण में हवा , पानी इत्यादि इत्यादि वस्तुएं मुफ्त में प्रदान की हैं । पर्यावरण हमें जो कुछ भी प्रदान करता है वह सिर्फ हमारी आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रदान करता है वह भी उधार।

चलिए आपने किसी का उधार ले ली मन करता है जितना चाहे उसे उड़ाई , फेंकिए , बहाइए , बर्बाद कीजिए। क्योंकि वह आपको दे दिया गया है आप उसका जिस प्रकार चाहे उपयोग करें। लेकिन याद रखिए वह आपको दिया हुआ उधार है जो आपको समय आने पर वापस देना होगा।

अभी मनुष्य को मनुष्य द्वारा दिया हुआ धन तो है नहीं जिससे वह दे या ना दे। मित्रों यह तो प्रकृति का दिया हुआ उधार है जिसे वह वापस अवश्य लेगी।

इसका परिणाम तो आप कुछ ही समय से आई इस महामारी ने दिखा ही दिया है। आप लोगों से हर रोज कहा गया वृक्ष लगाइए , वृक्ष लगाइए , वृक्ष लगाइए परंतु आप लोगों ने नहीं मानी। लगाना तो आप लोगों ने तो लगी लगाई गई प्रकृति की खूबसूरती को ही मिटा दिया।

उसकी तो सिर्फ खूबसूरती गई लेकिन आपने तो उसके लिए उधार का अपनी जान को देकर कर्ज चुकाया। तभी तो कहते हैं पृथ्वी गोल है। हिसाब तो सबका बराबर है।

अभी आप लोग पानी को भी बिना कीमत का जानकर बहा रहे हैं। लेकिन किसी दिन जिस प्रकार से आज वृक्षों को काटने के बाद आप ऑक्सीजन के लिए दौड़े-दौड़े फिर रहे हैं। ठीक उसी प्रकार मुझे कहते हुए भी डर लग रहा है ठीक उसी प्रकार आप लोगों को पानी के लिए दौड़ना न पड़े।

अपने अधिकार की प्रतीक्षा करता पर्यावरण—————-

हम बड़े स्वाभिमान के साथ कहते हैं ना कि हवा, जल ,अन्न इसके लिए किसी कचहरी में जाना नहीं पड़ता है। हम स्वाभिमान के साथ सर उठाकर कह देते हैं यह तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।आप जितना चाहें खाना खाते हैं ,जल पीते हैं , भरपूर सांसें लेते हैं।

प्रकृति भी तो अपने अधिकार का इंतजार कर रही है। उसे भी तो उसकी देखभाल करने वाला ,उसकी हिफाजत करने वाला , उसकी सौंदर्य को संजोए रखने वाला अधिकार मिलना चाहिए। यह भी तो उसका जन्मसिद्ध अधिकार है।

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SHAHANAJ KHAN

शहनाज़ खान दैनिक दृश्य की सह-संस्थापक एवं सम्पादक है इन्हें लिखने का शौक है। अपनी कविताओं को भी जल्द ही आप तक पहुंचाने का प्रयास करुंगी। धन्यवाद

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