
तुम मिल जाओ इस आशा में ,मन सावन की रिमझिम बारिश करता है , कितने सावन बीत गये , कितने अभी भी बाकी हैं । आसमान से कोई तारा , टुटे तो बतला देना , एक मन्नत मैं मागूॅंगी ,जो सदियों से आधी है। श्वेत रंग-सा रिश्ता हो , तेरे मेरे सम्बन्धों का , ये रंग रंगों में सच्चा , रंग झूठे सब बाकी है। जो कहा अभी वो सच है , सागर की लहरों सा , अपना जीवन उथल-पुथल रहा , और लोग कह रहे ये कहानी है। मैं भूल जाऊं ये मुमकिन कहां , तुम चले गए ये सच है क्या , मेरी सुनहरी रात हो तुम ,ये बातें जिन्दा है ना कि फ़ानी है।
Tags: हिन्दी साहित्य