
भारतीय संसद में 20 दिसम्बर 1988 को संविधान में एक ऐतिहासिक परिवर्तन किया गया जिसको 61वें संविधान संशोधन विधेयक भी कहा गया।जब सत्ता पक्ष की ओर से इस विधेयक में संशोधन किया जा रहा था तो सत्ताधारी दल के मन में एक सियासी दांब खेला जा रहा था। इस विधेयक को पारित कराने के पीछे की मनसा कुछ और थी। परन्तु सियासत में कब क्या हो जाये इसका अनुमान सटीक नहीं हो सकता।
61वें संविधान संशोधन विधेयक ओर उसके पीछे का सियासी दांब।
जब लोकसभा चुनावों में केवल मात्र एक वर्ष से भी कम का समय शेष बचा हो तब इस कानून को भारतीय संसद में इस विधेयक द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का फैसला किया गया था।
उस वक्त मतदाताओं की संख्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो सन 1979-80 के लोकसभा चुनाव के समय देश में वोटरों की कुल संख्या लगभग 35.5करोड थी।जोकि 1984के चुनाव आते-आते वोटरों की संख्या बढ़कर ३७.९ करोड़ हो गई।
इसी आंकड़े को ध्यान में रखकर इस आंकड़े का अनुमान १९८४ में ४० करोड़ तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा था।
सरकार ने इन सभी अनुमानों को संविधान संशोधन विधेयक पास करके बोना साबित कर दिया।
इस विधेयक को पारित होने के बाद मतदाताओं की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई। क्योंकि तत्कालीन सरकार ने वोट डाले की उम्र २१वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने पर मतदाताओं की संख्या का आंकड़ा बढ़कर ४४.७ करोड़ तक पहुंच गया। यानी कि लगभग ४.५करोड नये मतदाताओं को वोट देने का अधिकार मिला।
वोटर आईडी कार्ड ने भी रखा डीजिटल दुनिया में क़दम
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