
Kalam ke kisse। कलाम के किस्से।
एक बार हमारे विद्यालय में नव नियुक्त मास्टर जी विद्यालय में आये एक दिन वो मेरी कक्षा में भी पढ़ाने के लिए भी आये मैं अपने बचपन के मित्र रामानंद के साथ कक्षा में बैठा था। मैंने सिर पर टोपी पहन रखी थी और मेरे सहपाठी ने जनेऊ धारण कर रखा था।जो हमारे लिए अपने अपने धर्म का प्रतीक था। मेरे सिर पर टोपी को देख कर नये मास्टर जी ने मुझे प्रथम बैंच से उठाकर अन्तिम बैंच पर बिठा दिया।
इस व्यवहार से मैं मेरा सहपाठी रामानंद शास्त्री बहुत दुखी हुए। मैं अन्तिम बैंच से अपने मित्र रामानंद शास्त्री को देख रहा था और रामानंद शास्त्री मुझे देख रहा था।
हम दोनों इस समय बहुत दुखी थे परन्तु कुछ कह नहीं सकते थे। रामानंद शास्त्री मेरे अलग बैठाए जाने पर बहुत ही दुखी था। मास्टर जी के इस व्यवहार की जानकारी रामानंद शास्त्री ने घर जाकर अपने पिता लक्ष्मण शास्त्री जी को बताई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सुनकर शास्त्री जी बहुत नाराज़ हुए।
अगले दिन शास्त्री जी हमारे विद्यालय में आ गए और मास्टर जी के द्वारा किए गए व्यवहार पर मास्टर जी को अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि आपको पता है आपने बच्चों के ज़हन में किया डाल दिया।
आपने जो व्यवहार बच्चों के साथ किया है इससे बच्चों में एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना उत्पन्न होगी। आपने बच्चों में सामाजिक असमानता और साम्प्रदायिकता की भावना का विष घोलने का काम किया है।
ये बातें जब हो रही थी उस समय हम दोनों वहां उपस्थित थे। शिक्षक से शास्त्री जी ने साफ साफ कह दिया कि आपको अपने इस व्यवहार पर क्षमा मांगनी पड़ेगी अन्यथा आप विद्यालय छोड़कर चले जाएं।
शिक्षक ने अपने किए हुए व्यवहार पर दुःख प्रकट किया बल्कि लक्ष्मण शास्त्री जी के कठोर रुख और उनके धर्मनिरपेक्षता में उनके विश्वास से उस नौजवान शिक्षक में बहुत परिवर्तन देखने को मिला।
साभार:-अग्नि की उड़ान