
किसके पास रूकती है लक्ष्मी और किससे रखती है ईर्ष्या।
महाभारत , विष्णु पुराण और भागवत पुराण में समुद्र मंथन की एक कथा वर्णित है।जब असुरों और देवताओं में भयावह संग्राम हुआ । तीनों लोकों पर दानवों का बोलबाला था। तो देवतागण निर्बल हो गये ।
क्योंकि उन्हें दुर्वासा ऋषि ने शापित कर दिया था। फिर नारद और देवताओं की युक्ति से समुद्र मंथन की योजना बनाई , क्योंकि समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत को पीकर देवतागण अमर हो जाएं।
मन्दराचल पर्वत को मथनी बनाकर और वासुकी नाग को नेती बनाकर समुद्र मंथन किया गया। जिसमें से चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई। सर्वप्रथम हलाहल विष और अन्त में अमृत निकला।
समुद्र मंथन के दौरान ही लक्ष्मी (धन) की उत्पत्ति हुई थी।कहा जाता है कि लक्ष्मी गन्धर्व नगर की रेखा के समान होती है जो देखते -देखते ही ओझल हो जाती है। अतः यह स्थायी नहीं है।
मन्दराचल के घूमने से बने भॅ़ंवरों में चक्कर लगाने से उत्पन्न संस्कार वाली यह मानों अब भी घूमती रहती है। ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकलने वाले अन्य साथियों से ,कल्पवृक्ष से अनुराग , चन्द्रमा की कोर से टेढ़ापन ,उच्चैः श्रवा घोड़े से चंचलता ,कालकूट विष से मोहनशक्ति ,मदीरा से नशा ,कौस्तुभमणि से कठोरता ये सब साथ लेकर क्षीरसागर से निकली है। आइए जानते हैं लक्ष्मी का स्वरूप—————————–
विद्वानों से बैरभाव —
लक्ष्मी विद्वानों से ईष्र्या करती है ।अधिकतर विद्वान द्ररिद्रता के चक्र में फंसे रहते हैं। सरस्वती और लक्ष्मी परस्पर सौतन का भाव रखतीं हैं। क्योंकि विद्वानों के हृदय में सरस्वती का वास रहता है और लक्ष्मी , सरस्वती से उसी प्रकार बैर भाव रखती है।जिस प्रकार एक नारी से आलिंगित पुरूष को दूसरी नारी आलिंगन करना नहीं चाहती। विद्वानों का आलिंगन लक्ष्मी नहीं करती अर्थात् विद्वान , वीरों के पास धन नहीं रहता। लक्ष्मी विद्वानों को देखना नहीं चाहती ।
कन्जूस से प्रेम—-
लक्ष्मी विद्वानों से बैरभाव रखती है। वह विद्वान और सज्जनों को मार्ग पर पड़े हुए शूर कांटे समझकर छोड़ देती है और उनसे बचकर निकल जाती है। ये लक्ष्मी बड़ी कठोर स्वभाव वाली है।यह कृपण व्यक्ति से प्रेम करती है क्योंकि कंजूस व्यक्ति उससे प्रेम करता है।
वेद , स्मृति आदि शास्त्रों की मर्यादा को नष्ट करने वाली—-
लक्ष्मी वेद, स्मृति आदि शास्त्रों की मर्यादा की भी परवाह नहीं करती।वह उनके द्वारा बताए गए मार्ग से सदैव विपरीत ही चलती है।यह व्यक्ति को अपने मोहजाल में फंसाकर अधर्म की ओर ले जाती है। अतः लक्ष्मी शास्त्रों की मर्यादा को नष्ट करने वाली है।
अविश्वसनीय एवं चंचल—-
यह लक्ष्मी बड़ी स्वार्थी होती है। इसका विश्वास किसी भी प्रकार से नहीं किया जा सकता है।यह किसी के पास लम्बे समय तक रहने के उपरान्त भी उसे नहीं पहचानती। यह रूप और सौंदर्य को भी नहीं देखती है।जब इसे जाना होता है तो यह सुंदर से सुंदर व्यक्ति को भी नहीं देखती है और कुरूप के यहां चली जाती है। क्योंकि लक्ष्मी में चंचलता का गुण होता है।
दुराचारों का निवास स्थान—–
लक्ष्मीबुरे कामों का निष्पादन कराती है। यह न आचार का पालन करती है और न ही सत्य को समझती है।या तो यह आचारवान को छोड़कर दुराचारी के घर चली जाती है या फिर आचारवान को दुराचारी बना देती है।यह समस्त पापाचारों का घर है।
पिशाचनी——
यह मायामयी लक्ष्मी एक प्रकार की राक्षसी है।यह अपने थोड़े से साहस से व्यक्ति को पागल बना देती है।यह लक्ष्मी अनेक पुरूषों को उन्नति दिखाकर निर्बल हृदय वाले व्यक्ति को उन्नति पाने की उम्मीद में पागल बना देती है।