
कोरोनावायरस की दूसरी लहर अपने चरम थी। विपक्षी दल और सत्ताधारी दल पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनावों में अपने शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा जमाए हुए थे।
एक मुश्किल दौर को झेल रही जनता अपनों को दम तोड़ते देख रही थी। अस्पतालों में बेड और ओक्सीजन सलैण्डर की किल्लत ने लोगों की ओर परेशानी बढ़ा दी थी। देश में मच रहे हाहाकार को देखते हुए देश के हर कोने में समाज सेवी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही थी।एक अदृश्य जीवाणु ने मानव जीवन को खत्म करने की कोशिश कर रहा था। स्थिति इतनी भयुक्त थी मानो संसार में कयामत ने अपने आने की घंटी बजा दी हो।
इस अदृश्य जीवाणु के हमले का राजनैतिक हुक्मरानों ने खूब फायदा उठाया। विधानसभा चुनावों से लेकर पंचायत चुनावों में भी खूब हील हाली की गई। जनसभाओं में भीड़ जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।एक तरफ सरकार अपने प्रत्याशियों के लिए जनसमर्थन जुटाने में लगी हुई थी तो वहीं दिल्ली के बाडरो पर पिछले दिनों से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने भी पश्चिम बंगाल में सरकार की किसान विरोधी नीतियों को लेकर खूब जोर सोर से जन जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों से अबकी बार सरकार के ग्राफ में बृध्दि देखने को मिली।
जितने भी सामूहिक कार्यक्रम प्रस्तावित थे सभी रद्द कर दिये गये या अनिश्चितकालीन तक स्थगित कर दिए गए।जिले में चल रही प्रदर्शनी मे जाने माने बॉलीवुड गायक कलाकार जुवान नॉटियाल के कार्यक्रम सहित अन्य प्रोग्राम रद्द कर दिये गये। स्कूल कालेज बाजार विवाह समारोह सम्मेलन ये सभी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बन्द करने पड़े परन्तु चुनाव जारी रहे।
इस विषम परिस्थितियों में भी कुछ समाज के संकीर्ण मानसिकता वाले लोग अपनी जेबों को भरना नहीं भूले। दबाओं को ब्लेक में बेचने से लेकर आक्सीजन सलैण्डर तक को इस महामारी में अपनी जेबों को नोटों से भरने में सफल रहे।
छोटे दूकानों से लेकर बड़े-बड़े दूकानदारों ने अपने दैनिक उपभोग में आने वाले सामान को मुल्य से अधिक दर पर बेचने का धंधा खूब किया गया।
शासन और प्रशासन ने कहीं हद तक इन सब पर अंकुश लगाने की कोशिश की परन्तु धरातलीय स्थिति कुछ और ही थी।
कोरोनावायरस के चरम काल में ही पंचायत चुनावों का आयोजन किया गया इन पंचायत चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा मिठाइयां पकवानों से लेकर मीठ मदपान तक का वितरण किया गया। पंचायत चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा किया गया रुपए का दोहन कहां से बसूला जायेगा।पता है सभी इस बात को बड़ी अच्छी तरह से जानते हैं। फिर भी सभी मौन है, कोई इस बात को कहने वाला नहीं है कि ये सारे कार्य लोकतंत्र में ग़लत है।
अब बात को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं पंचायत चुनावों में ही एक और चुनाव होता है जिसे ब्लाक प्रमुख का चयन किया जाता है इसमें क्षेत्र पंचायत से चुनकर आए सदस्यों द्वारा इसे चुना जाता है इस चुनाव में भी विधायकों की तरह सदस्यों की खूब खरीदारी करी जाती है। इनके लिए चुग्गा चुगया जाता है।धन दौलत खूब लुटाई जाती है।एक सदस्य की कीमत लाखों में होती है। इनके लिए मध्यस्थता करने वाले भी खुब मज़े लूटते हैं। अपने खाने खर्चा से लेकर अपनी जेब को भी खूब भरते हैं।
ये सारे कार्य सबसे नीचे के चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा किए जाते हैं और ये आगे चलकर राजनीति में अपना भविष्य बनाते हैं तो वहां भी यही कार्य दोहराते हैं। अपने मर्जी से लोकतंत्र की खूब धज्जियां उड़ाते हैं। लोकतंत्र के रक्षक भी भक्षक बन जाते हैं।