
“पूत कपूत तो क्यों धन संचे, पूत सपूत तो क्यों धन संचे”। इस मुहावरे का क्या अर्थ है?
तो आपको बताना चाहता हूँ कि पूत कपूत तो क्यों धन संचे इसका अर्थ यह हैै कि यदि आपकी सन्तान दिवालिया हो, दुुराचारी हो ,व्यवचारी हो, कुसंंगति के रास्ते चल रहा है तो आपको ऐसे नालायकी सन्तान के लिए धन का संचय करना व्यर्थ है, धन का संचय करना व्यर्थ है ।
धन को इकट्ठा करने का आपको कोई लाभ नहीं मिलने वाला यदि आप धन को इकट्ठा करोगे तो इस संचित धन का इस्तेमाल गलत कार्य में होगा ओर आप इस परिस्थिति में उसे रोक भी नहीं सकते हो ।यदि पुत्र शराबी हुुुआ तो शराब पियेगा,
जुआरी हुआ तो जुआ खेलेगा, व्यवचारी हुआ तो अय्यासी करेगा ।
उदाहरण के लिए एक कहानी बताऊंगा कहानी बिल्कुल वास्तविक जीवन पर आधारित है कहानी में पात्रों को बदला जा रहा है ।
किसी गाँव मेंं परदेेशचन्द रहते थे परदेशचन्द तीन भाई थे तीनों बड़े प्रेम भाव से रहते थे, परदेशचन्द घर में सबसे छोटा था बुद्धि विवेक में दोनों भाइयों से भी तेज तरार हर विषय को तर्क ओर तरीके से बताता गाँव में भी उसके तर्क को कोई नहीं काटता सभी उसकी बुद्धिमानी की प्रसंसा करते गाँव की हर छोटी बड़ी पंचायत में भी उसके तर्क ओर सुझाव लिए जाते आस-पास के गाँव में भी पंचायतों को उसने अपने विचारों से फैसले सुनाये ।
परन्तुउसने अपने परिवार की ओर ध्यान नहीं दिया एकलौता बेटा था परदेशचन्द का आप पंचायतों में रह जाता महरारू इतनी चंचल नहीं थी की बेटा किसके साथ है किसके नहीं उसे तो बस इतना जानती कि बेटा घर से स्कूल गया है जो भी मांग होती उसकी उसे पुरा कर देते थे परदेशचन्द का बेटा स्कूल ना जाकर जुआरीओ के संगत में बैठ गया ओर जुआ खेलने की एसी लत लगी कि पिता के जीते जी सारी सम्पत्ति को विच्छो दिया बेटे की इस चलन को देखकर परदेशचन्द आत्मग्लानी में अन्दर ही अन्दर घुटने लगे अब वो घर से बाहर भी नहीं निकलते थे घर से निकला तो उनका अन्तिम विमान कुछ दिन बाद इनकी पत्नी भी चल वसी ओर बेटा आज भी उसी फटे हाल में है जिसका वो स्वयं जिम्मेदार था ।
परदेशचन्द केे जीवन में ओर भी कई घटना घटी थी जिनका मैने वर्णन नहीं किया है ।अब आते अपने मुुुुख्य मुुद्ददे पर तो “पूत कपूत तो क्यों धन संचे, पूत सपूत तो क्यों धन संचे”। इस मुहावरे का क्या अर्थ है? अगर पुत्र सालीन ,कुलभूषण ,सभ्य, गुुणी हो तो आपको धन संचय करना चाहिए