धरती के वृक्ष

धरती के वृक्षकह रही गरम हवा मंथन से ,

कहाॅं गये हमारे साथी ,

क्या उन्हें कैद किया , या आयी परेशानी ।

एक चिड़िया पंख फड़फड़ा कर ,बैठ गई मेरे पास , पूछा कहाॅं गये वो मतवाले , कहाॅं हैं उनकी हरी-शाख । 

आयामयूर निराश होकर , बोला क्या करूॅं मैं अब पंख बिखेरे नाच रहा हूं , बादल ना आए मेरे घर। 

कृषिसूखी देख वहां ,रोया किसान खेतों में ,क्यों आधुनिकरण ने , मुझ पर ऐसा जुल्म किया।

रोयी कोयल मन ही मन ,अब कहाॅं बैठ मैं गाऊॅं गीत , डाली-डाली सूक गयी , वातावरण की चमक मीत ।

सहस्त्र बालक मेरी आंखों में , छवि बनकर आए आज ,पूछ रहे हैं बार बार ।

वो मुझसे एक सवाल , विटप कहाॅं और उन पर झूला ,कहाॅं हमारा सावन आज़ , प्रदुषण की हवा ने , किया है हम पर बहुत प्रहार , सून्दर ठोस निर्मल धरा , 

हुई आधुनिक चमक से वीरान ,धरती रो-रो करे पुकार ,सींच वृक्ष करो मेरा श्रृंगार।

कब हुआ था वोट डालने का अधिकार १८ वर्ष।

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SHAHANAJ KHAN

शहनाज़ खान दैनिक दृश्य की सह-संस्थापक एवं सम्पादक है इन्हें लिखने का शौक है। अपनी कविताओं को भी जल्द ही आप तक पहुंचाने का प्रयास करुंगी। धन्यवाद

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