
पंचायत चुनावों में अपने आपको सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले लोग विलुप्त हो गये।
पंचायत चुनावों में अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले लोग पंचायत चुनावों के परिणाम के बाद ना जाने कहां विलुप्त हो गए। क्या पंचायत चुनाव खत्म होने के बाद सामाजिक जिम्मेदारियां खत्म हो जाती हैं? नहीं ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को समाज के हित में हमेशा कार्य करते रहना चाहिए पंचायत चुनावों के परिणाम जो भी रहे हो। पंचायत चुनावों के परिणामों अनदेखा कर सामाजििक कार्यों प्राथमिकता देने चाहिए।
पंचायत चुनावों के परिणाम आप सभी के सामने हैं इन पंचायत चुनावों में जहां तक परिणामों की बात करी जाए तो किसी एक को तो निराशा ही हाथ लगनी थी। जिस पक्ष के हाथ में परिणम आशा के अनुरूप मिलें उस पक्ष में उर्जा दूने उत्साह से संचार कर रही है।
इन पंचायत चुनावों में जहां तक आम जनों की भागीदारी की बात की जाए तो आम आदमी में भी इन पंचायत चुनावों के प्रीति इतनी लगन देखने को मिली है की वह अपने घरेलू कामकाज को त्याग कर अपने समर्थक के प्रचार प्रसार में अपने कार्य को त्याग बैठे।
जबसे पंचायत चुनावों के परिणाम घोषित हुए हैं ग्राम सत्ता में पक्ष विपक्ष दो भागों में विभक्त हो चुका है। इन पक्ष विपक्ष में आपसी मतभेद भी देखने को मिल जाएंगे पंचायत चुनावों में उम्मीदवार तो चुप हैं परंतु वोटर सपोर्टर आपस में मतभेदों को लेकर विभक्त हैं। इनवर्टर सपोटरा में ही सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा भी किया जाता था परंतु परिणाम उलट-पुलट आने के बाद से यह सामाजिक कार्यकर्ता कहीं अपने आप को अपराधी प्रवृत्ति का साबित ना कर बैठे खैर यह तो भविष्य की कोख में है आने वाला कल किसने देखा है जो भी होगा सब कुछ सही होगा।
पंचायत चुनावों में ग्राम सत्ता को हथियाने के लिए इतने कार्यकर्ता उत्पन्न हुए मानव समाज के अंदर सामाजिक कार्यकर्ता कार्यकर्ताओं की अचानक से बाढ़ सी आ गई। पंचायत चुनावों के आरक्षण की सूची शासन स्तर से जारी होने के बाद ग्राम पंचायतों में पोस्टरों पर कुछ इस तरीके के शब्द देखने और पढ़ने को मिले जोकि विलुप्त ही थे।
पंचायत चुनावों में कर्मठ जुझारू इमानदार शिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता नेता नहीं सेवक चुनो आदि आदि शब्दों से पोस्टरों पर भरे हुए थे।
जैसे-जैसे पंचायत चुनावों के परिणामों की घोषणा होती गई यह सामाजिक कार्यकर्ता ईमानदार जुझारू शिक्षित कर्मठ विलुप्त होते नजर आते रहे। वोटरों का अभी पोस्टर को पढ़कर दिमाग का दही बन गया उन्हें इस बात का भी पता नहीं था उनके गांव में इमानदार शिक्षित कर्मठ जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता भी बसे हुए हैं। पंचायत चुनावों के परिणाम के बाद यह सामाजिक कार्यकर्ता अपने आप ही विलुप्त हो जाते हैं और अपने आप ही उत्पन्न हो जाते हैं। जब कभी समाज को इन कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ती है तो यह विलुप्त हो जाते हैं या फिर दललों के रूप में नजर आएंगे।
समाज को इन कर्मठ जुझारू कार्यकर्ताओं का पता भी नहीं होता यदि यह पंचायत चुनाव ना होते। पंचायत चुनावों में परिणाम जिस पक्ष के अनुरूप अनुकूल निकले उधर उत्सव का माहौल बना हुआ है। पंचायत चुनाव के परिणाम जिसके प्रतिकूल निकले वहां परिस्थिति में कुछ निराशा का माहौल बना हुआ है। पंचायत चुनावों में परिणाम तो अनुकूल और प्रतिकूल आने थे। पंचायत चुनावों के परिणामों के बाद ग्राम सत्ता में फूट का मौसम भी बन बिगड़ते नज़र आ रहे हैं। पंचायत चुनावों में ग्राम सत्ता जिसको मिली उसको मिली परन्तु हर रोज नयी महाभारत देखने को मिल रही है।