
भारत के शेक्सपियर का दर्शन एक दृष्टि में।
हमारा भारत विश्व गुरु कहा जाता है। क्योंकि हमारे भारतीय इतिहास को अनेक प्रचण्ड , प्रतिभाशाली विद्वानों ने प्रकाशित किया है।
वेदव्यास , भवभूति , बाणभट्ट, भारवि , हर्ष , कालिदास आदि रत्न भारती के गर्भ से उत्पन्न हुएं हैं । अपनी रचनाओं से साहित्य जगत को सुसज्जित किया। अनेकों विद्वानों ने साहित्य जगत में मूर्धन्य एवं यशस्वी स्थान प्राप्त किया।
अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी साहित्यिक संस्कृति और सभ्यता को जीवित रखा। उसी संस्कृति सभ्यता को अपनी पीढ़ी को हस्तांतरित किया। अल्पज्ञानियों को अपनी कृतियों से विशाल ज्ञान शक्ति प्रदान की।
परन्तु अभी भी कुछ लोगों को जानकारी ही नहीं है कि हमारे प्राचीन विद्वानों की कृतियां कौन कौन सी है ?हमारे विद्वान कहां और कब पैदा हुए ?हम कालिदास जी को ही ले लेते हैं। उनके विषय में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है और न ही उनकी रचनाओं के विषय में कुछ जानकारी।हम आपको इस लेख में महाकवि कालिदास जी और उनकी रचनाओं के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।
कालिदास जी का जन्म समय-
कालिदास ,जिनको दुनिया भारत का शेक्सपियर के नाम से भी जानती है। लेकिन कविकुल गुरु कालिदास जी के जन्म के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं।उनका किस शताब्दी में जन्म हुआ इस विषय में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।
केवल अनुमान लगाया जा सकता है। उनके जन्म प्रमाणपत्र में संदेहपूर्ण स्थिति है। कालिदास जी कब , कहां पैदा हुए इसका सटीक- सटीक उत्तर नहीं दिया जा सकता। परन्तु उनके जीवन के सम्बन्ध में चार प्रमुख तथ्य प्रचलित हैं –
(1) ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी
(2) ईसा की चतुर्थ-पंचम शताब्दी
(3)ईसा की षष्ठ शताब्दी
(4) ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी
समस्त विवादों के उपरान्त इन चार तथ्यों में से ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी को डाॅ. राजबली पाण्डेय , सूर्यनारायण व्यास जैसे भारतीय विद्वानों ने और विल्सन ,सर विलियम जोन्स ,पीटर्सन आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी कालिदास जी का जन्म समय होने का समर्थन किया है। कालिदास के ग्रन्थों में कुछ वैदिक प्रयोग प्राप्त होते हैं जोकि लौकिक संस्कृत पर वैदिक संस्कृत के प्रभाव की सूचना देते हैं जो प्रथम ईसा पूर्व का समय है।
अतः महाकवि कालिदास का समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी मानना सार्वधिक प्रमाणिक है।
कालिदास जी का जन्म स्थान-
जिस प्रकार उनके जन्म समय की स्थिति विवादों में रही है।उसी प्रकार उनके जन्म स्थान के विषय में स्थिति है। उनके जीवन के विषय में भी निश्चिंत रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता ये कहां पैदा हुए। कोई उन्हें विदर्भी बताता है , कोई बंगाली , कोई कश्मीरी तो कुछ विद्वानों ने उन्हें उज्जयिनी का बताया है ।
परम्परा के अनुसार उज्जयिनी नरेश शकप्रवर्तक राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक कालिदास भी थे। प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम के अनेक राजा हुए हैं। कालिदास जी किस विक्रमादित्य से सम्बन्ध रखते थे। यह निश्चित नहीं है। इनका अधिकांश जीवन का उत्तर काल उज्जयिनी में ही व्यतीत हुआ।
परन्तु जन्म स्थान कहां था ?यह विचारणीय है ?
कृतियां—————————————–
कालिदासजी ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर अपनी रचनाएं कीं हैं। उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और तत्व निरूपित हैं। कालिदासजी की रचनाएं निर्विवाद है । महाकवि ने कुल मिलाकर सात रचनाएं कीं हैं। जिनमें तीन नाटक , दो महाकाव्य और दो खण्डकाव्य निहित हैं। वैसे तो महाकवि कालिदास जी की हर रचना ने अद्भुत , अलौकिक ख्याति प्राप्त की है।
विभिन्न पौरस्त्य और पाश्चात्य विद्वानों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा मुक्त कंठ से की है। इन्होंने सात कृतियों की रचना करके साहित्यिक जगत में एक मूर्धन्य स्थान प्राप्त किया है। लेकिन उन्हें विश्व प्रसिद्धि को प्राप्त कराने में उनके नाटक आभिज्ञानशाकुन्तलम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इनका ये नाटक पाश्चात्य लेखक विलियम शेक्सपीयर के नाटक के समान है।यह नाटक महाकवि की दूसरी रचना है और इसी नाटक की वजह से उन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है।
उनकी रचनाएं–
1-नाटक——–
अभिज्ञानशाकुन्तलम् — यह नाटक श्रृंगार रस प्रधान है। श्रृंगार रस की प्रधानता होने के कारण और प्रेम के अद्भुत प्रस्तुतकरण के कारण महाकवि को जगतख्याति प्राप्त हुई है।
महाभारत से दुष्यन्त और शकुन्तला की कथा लेकर कालिदास ने सात अंकों में नाटक का निर्माण किया है। यह नाटक अत्यंत रसिक है।
विक्रमोर्वशीयम् — महाकवि ने इस कृति में कवित्व का विलास अधिक कर दिया है। इस नाटक की रचना पांच अंकों में हुई है।इस नाटक में चंद्रवंश के प्रतापी राजा विक्रम और देवलोक की परम सुंदरी अप्सरा उर्वशी के प्रेम से लेकर विवाह तक की कथा वर्णित है। मालविकाग्निमित्रम् — इस नाटक का आधार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इसके अंकों की संख्या भी पांच है। इसमें भी शुंगवंशीय नरेश अग्निमित्र और मालविका के प्रेम का वर्णन है।
2-खंडकाव्य————-
ऋतुसंहार— ऋतुसंहार महाकवि कालिदास जी की ऋतु से संबंधित खंड काव्य रचना है । छः सर्गो में विभक्त इस काव्य में षड्-ऋतुओं का वर्णन किया गया है ।
मेघदूतम— संस्कृत पंडित परंपरा मेघदूतम को खंडकाव्य मानती है। यह कृति अत्यधिक लोकप्रिय हो गई है। मेघदूतम पर 50 से भी अधिक टीकाएं लिख चुकी हैं। यह पूर्वमेघ और उत्तरमेघ में विभक्त है।
यह कालिदास जी की एक अनुपम कृति है। इसमें वियोगविधुरा पत्नी के पास यक्ष का मेघ के द्वारा संदेश भेजा जाना वर्णित है।
3-महाकाव्य————
कुमारसम्भवम् — वर्तमान में उपलब्ध किस महाकाव्य कुमारसंभवम् में सत्रह सर्ग हैं किंतु प्रथम आठ सर्ग ही कालिदास की रचना माने जाते हैं।
शिवऔर पार्वती जैसी दिव्य दंपत्ति के रूप तथा प्रेम का वर्णन नितांत औचित्य पूर्ण कालिदास जी ने किया है। रघुवंशम्— रघुवंशम महाकाव्य कालिदास जी का सर्वोत्तम काव्य माना जाता है।
रघुकार अभिधान का प्रयोग कालिदास जी के लिए किसी महाकाव्य के कारण मिला है। इस महाकाव्य में रघुवंश की राजाओं का वर्णन किया गया है। इसमें उन्नीस सर्ग है।
राजकुमारी विद्योतमा के राजकुमारी विद्योतमा