मेरे आदर्श , मेरे शिक्षक -शिक्षकदिवस विशेष

मेरे आदर्श शिक्षक, शिक्षक दिवस पर विशेष लेख

मैं उनके लिए क्या लिखूं ,जिन्होंने मुझे लिखना सिखाया। मैं उनके लिए क्या क्या कहूं , जिन्होंने मुझे हर शब्द का अर्थ बताया है जीवन का महत्व समझाया है। लेकिन फिर भी हृदय में उठें, उनके प्रति श्रद्धा के भाव कलम के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रही हूं।

आपके लिए लिखे गए शब्दों में यदि मुझसे कोई गलती हो जाए तो क्षमा चाहती हूं।

शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य संबंध रक्त का न होकर भाव का होता है जहां तक मैं मानती हूं सभी संबंधों में भावना का होना बहुत आवश्य होता है। श्रद्धा का भाव विद्यार्थी का शिक्षक के प्रति और स्नेह व समर्पण का भाव शिक्षक का विद्यार्थी के लिए होना चाहिए।

मैं अपने शिक्षकों की विषय में जितना लिख सकती हूं, हृदय से, वह कम ही होगा। मैं तो केवल प्रयास कर रही हूं। अन्यथा उनकी खूबियों को लिखने के लिए शब्दों की माला कम पड़ेगी

मां- बाप तो जन्मदाता हैं। लेकिन जिन्दगी सिर्फ गुरु देते हैं । जिन्दगी में हर समस्या से बहादुरी के साथ सामना करें आप ही सिखाते हैं। गुरु सड़क के समान होते हैं जो अपनी बच्चों को मंजिल तक पहुंचा देते हैं और स्वयं वही रह जाते हैं।

दुसरा गुरु जी ने हमें हमेशा सिखाया , जीवन में कोई ऐसा कार्य नहीं करना जिससे तुम्हारी शिक्षा पर उंगली उठे। आपके कार्य से खिन्न होकर कोई आपको पढ़ा-लिखा गवार ना कहे‌ क्योंकि वह गाली तुम्हारे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे शिक्षक के लिए  होगी।

मेरे शिक्षक हमेशा कहते थे कि जीवन में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों से हमेशा डटकर मुकाबला करना। ना कि उससे डर कर आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त करना। प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने नियंत्रण में करना ही जीवन है।

आप हमेशा कहते थे यदि जीवन में कुछ गलत नहीं किया तो किसी से भी डरना नहीं। चाहे वह समाज हो , स्कूल हो या फिर परिवार।

मेरे अध्यापक हमेशा कहते थे कि तुम्हारे अंदर जितना सामर्थ्य हो उसके अनुसार दूसरों की मदद करना। याद रहे सहायता किसी विशेष धर्म जाति की आधार पर नहीं बल्कि मानवता के आधार पर करना।

मेरे अध्यापक जी ने हमेशा एक ही बात कही जिंदगी में जो कुछ भी करो शिद्दत के साथ करना । चाहे वह जीवन की परीक्षा में हो या फिर अपने लक्ष्य की दिशा में।

मेरे शिक्षक कहते थे जीवन में चाहे कितनी भी ऊंची उड़ान भरना परंतु अपनी जमीन से पैरों को मत हटने देना

मेरे शिक्षक कहते थे कि जीवन में विनम्र होना परन्तु कमजोर नहींं।

जीवन में सब कुछ समाप्त हो जाने पर भी हिम्मत मत हारना और उम्मीद की किरण को कभी बुझने मत देना। किसी भी कार्य को कोशिश से शुरू करना और उम्मीद से खत्म।

और हां मुझे अंतिम और सबसे जरूरी बात कहीं किसी भी कार्य को अंतिम तिथि से पहले ही पूर्ण कर लेना।

मेरी जीवन में प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सच बताने वाले ,रास्ता दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले और बोध कराने वाले गुरु है।

अतः गुरु में त्याग, तपस्या,ज्ञान ,अनुभव, विवेक, वैराग्य, पिता की तरह अनुशासन प्रियता , माता की तरह वत्सल ता, बादलों की तरह उदारता और चंदन की तरह शीतलता होनी चाहिए जोकि मेरे गुरुओं में संपूर्ण रूप से निहित है। और अंत में

 गुरु देवो भव:।

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SHAHANAJ KHAN

शहनाज़ खान दैनिक दृश्य की सह-संस्थापक एवं सम्पादक है इन्हें लिखने का शौक है। अपनी कविताओं को भी जल्द ही आप तक पहुंचाने का प्रयास करुंगी। धन्यवाद

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