
हम मोहब्बत की समा जलाते रहे ,वो हवाओं के झोके चलाते रहे।
बुझा ना सके समां प्यार की, हम ऐसी समां जलाते रहे
ऐसी बेरूखी क्यों हमारे लिए ,क्यूँ हमसे बो इतनें नाराज़ हैं।
तुम गीत हो मेरे लिए,तुम मेरा हौसला हो ओर मेरी आवाज़ हैं। एसी गजलें बनो तुम,तन्हाईयों में जिन्हें हम गुन गुनाते रहे।
बुझा ना सके समां प्यार की,हम एसी समां जलाते रहे।
हमने हवाओं से दोस्ती कर ली,चरागो को खतरा जानके।
वो हवा भी हमें दगा दे गई ,तूफानों का दामन थामके।
इक मुसीबत में उनको आवाज़ दी वो हमसे दामन छुड़ाते रहे।
बुझा ना सके समां प्यार की,हम एसी समां जलाते रहे।
ए मोहब्बत के राही ये खता ना कर,दोस्ती में एसी दगा ना कर। अनवर बिछाये राहों में मखमल,बेताव से इसको जुदा ना कर।
वादे हम एसे करें हमनसी जीवन भर जिनको निभाते रहे।
बुझा ना सके समां प्यार की,हम एसी समां जलाते रहे।
Tags: हिन्दी साहित्य
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