
समस्त वेद, वेदांतो , विद्याओं को जानने वालीं विदूषी राजकुमारी विद्योतमा के विषय में सभी जानते हैं । आज़ हम आपसे उनके जीवन के सबसे रोमांचक भरें प्रसंग के विषय में बात करने वाले हैं । जी, हां काशी नरेश की इकलौती पुत्री विद्योतमा बचपन से ही शिक्षा अध्ययन में रत थीं। जैसे जैसे समय बढ़ा वैसे वैसे ही राजकुमारी विद्योतमा शाश्त्रार्थ ज्ञान में वृद्वि करते हुए , विवाह योग्य हुईं, काशी नरेश अब अपनी राजकुमारी का विवाह किसी ख्याति प्रसिद्ध राजकुमार से करना चाहते थे। प्राचीन काल में स्त्रियों को भी समान अधिकार प्राप्त थे।उनकी राय प्रत्येक विषय में जानी जाती थी। फिर ये तो नरेश की प्रिय पुत्री विद्योतमा थीं। राजा अपनी पुत्री से राय लेने के लिए राजकुमारी विद्योतमा के कक्ष में गये । राजा के द्वारा विवाह प्रश्न करने पर , राजकुमारी ने उत्तर दिया,जो व्यक्ति मुझे शास्त्रार्थ ज्ञान में हरा देगा मैं उससे विवाह कर लुंगी। राजा ने इसकी घोषणा समस्त नगर में करा दी।यह सूचना पाकर दूर दूर के विद्वान राजदरबार में उपस्थित हुए । परन्तु कोई राजकुमारी विद्योतमा को पराजित न कर सके । इसमें उन्हें अपना अपमान अनुभव हुआ । राजकुमारी से बदला लेने के लिए एक युक्ति बनाईं, क्यों न राजकुमारी का विवाह किसी निपट मुर्ख से करा दिया जाये। दरबार से लोटते समय विद्वानों की भेंट कालीदास से हुई ,जो पेड़ की उसी शाखा को काट रहा था जिस पर वह बैठा था। विद्वानों ने सोचा इससे बड़ा मुर्ख कौन होगा ,तब कालीदास को विवाह लोभ देकर विद्वानों ने उन्हें विवाह के लिए मना लिया और कहा कि विवाह सम्पन्न होने तक मौन व्रत धारण करें यदि तुमसे कोई प्रश्न किया जाए तो केवल इशारे से उत्तर दें ,कालीदास मान गये। दरबार में जाकर विद्वानों ने राजकुमारी विद्योतमा से कहा, राजकुमारी ये बहुत ही बड़े शास्त्रार्थ ज्ञाता हैं परन्तु इन दिनों इन्होंने मौन व्रत धारण कर रखा है परंतु ये आपके प्रश्नों के उत्तर इशारों से दे देंगे राजकुमारी विद्योतमा मान गई और उनके द्वारा किए गए समस्त प्रश्नों का उत्तर इशारों से देकर कालीदास ने विवाह प्रतियोगिता में विजय प्राप्त की । विद्योतमा ने अपने पति कालीदास संग ससुराल की विदाई ली । ससुराल पहुंच कर जैसे ही गृह प्रवेश किया तो बाहर से एक ऊंट के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी । विद्योतमा ने कालीदास से पूछा,- “किमिदम्” अर्थात् यह किया है ? तब कालीदास ने उत्तर दिया उट्र है उट्र है। इस पर राजकुमारी विद्योतमा ने कालीदास को महामुर्ख समझकर धक्के मारकर बाहर निकाल दिया । इसके बाद अपूर्व ज्ञान शक्ति प्राप्त कर वर्षो बाद अपने घर पहुंचे और द्वार खोलने की प्रार्थना की। राजकुमारी विद्योतमा ने उनसे पूछा- “अस्ति कश्चिद् वाग्विशेष:”। कालीदास के उत्तर से सन्तुष्ट होकर राजकुमारी विद्योतमा ने कालीदास को सम्मानपूर्वक अन्दर बुलाया।
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