
विश्व गौरैया दिवस : खतरे में है गौरैया
20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। आज के दौर में गौरैया संकट में है। उनकी प्रजाति निरंतर विलुप्त होती जा रही है। उनकी प्रजाति का 20 फीसद हिस्सा ही संसार में बचा है। कृषि अनुसंधान संस्थान और कृषि विज्ञानी चिंतित है कि गिद्धों के सामान गौरैया की प्रजाति विलुप्त ना हो जाए।
यदि ऐसा हुआ तो प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा जाएगा। फसल चक्र चौपट हो जाएगा , जिसे फिर से संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा। आज गौरैया की आबादी 50 से 60% तक घट गई है । पहले गांवों की तरह शहरों में भी घरों में गौरैया फुदकती और दाना चुगती नजर आती थी। अब तो यह शहरों से गायब सी हो गई है।
गौरैया वही रहती है जहां मनुष्य रहते हैं। घरों में लोगों के साथ रहना इन्हें बहुत पसंद है। गांव , कस्बों में पहले घर घास- फूस , छप्पर वाले या कच्चे रहते थे। जिनमें गौरैया दरारों या थोड़ी सी जगह में अपना घोंसला बना लेती थी। अब गांवों- गांवों सीमेंट कंक्रीट के घर बनने , जंगल कटने , खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग होने के कारण तथा मोबाइल टावर लगने से गौरैया का जीवन प्रभावित हुआ है।
गौरैया के विलुप्त होने के कारण
खेतों में कीटनाशकों का उपयोग— विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं आदि फसलों में कीड़ों को मारने के लिए जो कीटनाशक प्रयोग किए जाते हैं , उनके कारण गौरैया मर रही है। यदि कीटनाशकों का प्रयोग ऐसे ही जारी रहा तो जल्द ही गौरैया का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
मोबाइल टावर— पंछी रात में चांद – तारों और दिन में सुरज की रोशनी में देखकर अपनी दिशा तय करते हैं परन्तु मोबाइल टावरों की तरंगें उनकी दिशा भ्रमित करतीं हैं। मोबाइल टावरों के लगने से गौरैया की प्रजाति प्रभावित हुई है । जिस से लगातार उनकी संख्या में कमी आई है।
गांवों में कच्चे मकानों में कच्चे मकानों का खत्म होना
गांव में कच्चे मकान रहते थे। तो गौरैया अपना घोंसला बनाती और छप्परों पर या कच्चे मकानों में अपना बसेरा करती थी। लेकिन कच्चे मकान जैसे-जैसे पक्के मकानों में परिवर्तित होते गए वैसे वैसे ही गौरैया की प्रजाति भी अपना बसेरा वहां से छोड़ती गई।
वनों की अन्धाधुंध कटाई—
जंगल पेड़ पौधों से हरा भरा रहता था। तो गौरैया का मन भी ताजगी से भरपूर रहता था। जब से पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई हुई है। तब से गौरैया का जंगल से रेन बसेरा भी खत्म हो गया है। पेड़ों से जंगल की रौनक थी पेड़ कट जाने से जंगल की रौनक खत्म हो गई है और गोरिया उस वीराने में रहना नहीं चाहती। इसलिए वह वहां से चली गई है।
आधुनिकरण—
आधुनिकरण ने भले ही मनुष्य के लिए आरामदायक वस्तुएं उपलब्ध कराई है। लेकिन यह भी सत्य है कि आधुनिकरण ने पशु पक्षियों को हानिकारक रूप से प्रभावित किया है। आधुनिकरण की वजह से बहुत से पक्षी विलुप्त हो गए हैं। जिनमें से गिद्ध आदि भी हैं। कहीं ना कहीं आधुनिकरण भी इन सब के लिए जिम्मेदार है।
गौरैया की प्रजाति निरंतर विलुप्त होती जा रही है। इसका जिम्मेदार कोई और नहीं वरन् मनुष्य स्वयं है। गोरैया कृषि के लिए बहुत आवश्यक है। घर में यह दूध- भात खाती है तो खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खाती है। इस संबंध में चीन और इंडोनेशिया का उदाहरण सबक सीखने के लिए पर्याप्त है। चीन में कम्युनिस्ट शासन प्रारंभ हुआ तो वहां की सरकार को लगा कि गौरैया फसल को खाए जा रही है। इस पर उनको मारने का सरकारी अभियान चलाया गया। चीन में गौरैया समाप्त हो गई , किंतु 2 साल बाद प्रकृति ने इतने कीड़े मकोड़े पैदा कर दिए , जो फसलें चट करने लगे। इसके लिए फिर जांच शुरू कराई गई ।जांच में पता लगा कि गौरैया कीड़े मकोड़े खाकर प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखती है।