
साम्प्रदायिकता को फैलाने वाले राष्ट्रीय एकता की राह में सबसे बड़े बाधक।
साम्प्रदायिकता का अर्थ— धर्म विशेष में श्रेष्ठता का संचार कर उसे अन्य मत- मतान्तरों की अपेक्षा अधिक अच्छा मानना ही साम्प्रदायिकता है अर्थात् किसी धर्म विशेष की अनावश्यक उत्कृष्टता को फैलाकर उसी धर्म को अन्य धर्मों से उत्तम मानना साम्प्रदायिकता है। जिससे लोग एक-दूसरे के धर्म के प्रति घृणा करने लगते हैं। धर्म अथवा संस्कृति के आधार पर पक्षपात पूर्ण व्यवहार करने की क्रिया साम्प्रदायिकता है । साम्प्रदायिकता समाज में वैमनस्य पैदा करती है और आपस में लड़ाई-दंगे कराती है। जिसके परिणाम घातक होते हैं।
हम सब जानते है कि साम्प्रदायिकता समाज में स्वयं नहीं फैलती वरन् उसे फैलाया जाता है । कुछ धुर्त लोग अपने लाभ के लिए समाज में अशांति का वगुल बजाते हैं , अपना उद्देश्य पूरा करते हैं और हम गीता/कुरान जैसे पवित्र ग्रंथों से प्रवचनों के समान बोले जाने वाले वचनों पर मुग्ध हो जाते हैं। भले ही हम लोग गीता/कुरान के उपदेशों को अपने जीवन में उतारें या ना उतारें परन्तु उसके समान बातों को तो अवश्य मानेंगे। चाहें परिणाम जो हों। वर्तमान समय में भारत में जिस प्रकार की साम्प्रदायिकता का कीड़ा छोड़ा गया हैै उसके मारने की दवा तो सम्पूर्ण विश्व में भी नहीं मिलेगी।
— साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम—
समाज में एक दूसरे के प्रति ईष्र्या —साम्प्रदायिकता समाज में वैमनस्य पैदा करती है और एकता को नष्ट करती है। अपने हितों के लिए कुछ लोग समाज में अनेक लोगों को धर्म के नाम पर आपस में में लड़ाते हैं। लोगों में मेरा धर्म श्रेष्ठ की होड़ लग जाती है। परिणाम , एक- दूसरे में पारस्परिक स्नेह , सहानूभूति , सहयोग की भावना के स्थान पर लोगों में द्वेष , घृणा आदि की भावना पैदा हो जाती है।
समाज में अशांति—
इतिहास गवाह है कि धर्म के नाम के रंगों से राजनितिज्ञो की इमारतों में रंगोलियों से राजनीति को सजाया गया है।
भारत जैसे देश में अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर और “फूट डालो राज करो” की नीति को अपनाकर लम्बे समय तक राज किया।कल विदेशी लोगों ने यह नीति अपनाई थी और आज अपनों ने । भारत में कोरोना काल में हिन्दू और मुस्लिमों के मध्य जो घृणा का वायरस पैदा हुआ है उसकी वेक्सीन मिलना तो नामुमकिन है। इंसान , इंसान न रहकर एक हेवान बन गया था। जहां लोगों को एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए था , वहां लोग एक दूसरे से दूरी बनााने पर तुले थे। समाज में अशांति का वातावरण था।
शासन के प्रति अविश्वास—-
यदि निरन्तर इस प्रकार से लोग आपस में धार्मिक शीत युद्ध करते रहेंगे तो समाज में शांति व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाएगी । समाज में अशांति का जिम्मेदार शासन ही होगा। यदि इसे शीघ्र ही समाप्त नहीं किया गया तो लोगों का शासन से विश्वास उठ जाएगा।
राष्ट्रीय एकता का खंडन—- साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता का विनाश कर देती है। साम्प्रदायिकता के कारण समाज में दंगे फसाद होते रहते हैं। विभाजन जैसे कुपरिणाम निकलकर सामने आतें हैं। साम्प्रदायिकता से राष्ट्रीयता की भावना को ठेस पहुंचती है।
सांस्कृतिक विरासत को हानि—- आए दिनों समाज में दंगे होते रहते हैं। जिससे हमारी संस्कृति और सभ्यता को ठेस पहुंचती है। विश्व के सामने जिस संस्कृति की वजह से हम एक अलग प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। साम्प्रदायिक कुकर्म हमारी प्रतिष्ठा को अपने पैरों तले कुचल देते हैं।
आर्थिक विकास में मन्दी—-
जब लोगों में पारस्परिक सोहार्द एवं स्नेह खत्म हो जाता है। तो लोग आपस में धर्म के नाम पर उग्र हो जाते हैं और जगह -जगह हिंसा फैल जाती है। हिंसा में लोग सार्वजनिक सम्पत्ति को तहस-नहस कर डालते हैं। जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है।
अक्सर कहा जाता है कि साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है । लेकिन कभी सोचा है कि यह साम्प्रदायिकता कहां से आती है ? कौन फैलाता है ? आप और हम ,सब जानते है लेकिन फिर भी नजरंदाज कर देते हैं। साम्प्रदायिकता भले ही राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ी बाधा है। लेकिन साम्प्रदायिकता को फैलाने वाले राष्ट्रीय एकता के लिए ही नहीं अपितु विश्व एकता के लिए भी सबसे बड़े बाधक हैं।
हम सबको चाहिए कि किसी भी तरह की अफवाहों पर ध्यान न देकर अपने कर्तव्यों से जुड़े रहें। रहा धर्म की रक्षा का सवाल । तो उसकी रक्षा सदैव ईश्वर करता है। हमें धर्म की रक्षा के नाम पर हिंसात्मक रूप अपनाने की जरूरत नहीं है और इसकी कोई भी धर्म आज्ञा नहीं देता है।