
राष्ट्रपिता, बापू जी का जन्म २ अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। इनके पिता करमचंद गांधी एवं माता पुतलीबाई थीं। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। बापू जी हमेशा से ही सत्य,अहिंसा और प्रेम के रास्ते पर चलते और चलने को कहते थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी बापू जी ने सत्य अहिंसा और प्रेम के माध्यम से अपनी अहम भूमिका निभाई। भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए उनका विशेष योगदान रहा। उन्होंने अनेक स्वतंत्रता आंदोलन भी चलाए। जिनमें नमक कानून भंग करना, असहयोग आन्दोलन,डांडी यात्रा,सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि शामिल थे। गांधी जी ने भारतीयों के साथ मिलकर अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नमक कानून को तोड़कर 1930 में डांडी पहुंच कर गैर कानूनी रूप से नमक बनाकर नमक कानून को भंग कर दिया। असहयोग आन्दोलन में समस्त भारतवासियों ने प्रतिज्ञा ली कि विदेशी विश्वविद्यालयों एवं विद्यालयों, उपाधियों, पदों,न्यायालयों तथा वस्तुओं का बहिष्कार करेंगे। 78 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से डांडी के लिए प्रस्थान किया।200 की दुरी पैदल ही 24 दिन में तय की गई जो डांडी मार्च, यात्रा कहलाई। 8 अगस्त 1942 को इन्होंने “भारत छोड़ो आन्दोलन”का प्रारंभ किया। इसमें इन्होंने करो या मरो , अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया।
आन्दोलनो के साथ साथ बापू जी पशुओं की देखभाल और चरखे से सूत कातना जैसे काम भी किया करते थे। एक बार बापू जी आश्रम में रहने वाले पशुओं की देखभाल कर रहे थे ।एक गाय के खुर (पैर) में अधिक घाव था। बापू जी नीत-नियम से उस गाय के घाव की मरहम पट्टी किया करते थे लेकिन घाव ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था। घाव में कीड़े पड़ने लगे थे।कुछ दिनों बाद स्थिति ऐसी हो गई कि गाय ने चारा-पानी तक छोड़ दिया। तब बापू जी ने उस गाय को एक ज़हर का इन्जेकशन दिया और कहा कि दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई पीड़ा से जी रही इस गाय को मैंने हमेशा के लिए पीड़ा मुक्त कर दिया है।
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