मेरा मन

मेरा मन भी करता है,चिड़िया की तरह बन जाऊं।

मेरा मन भी करता है, बादलों की तरह घिर आऊं।        मेरा मन भी करता है,मोर और कोयल की तरह नाचूं,गाऊं। मेरा मन भी करता है,सावन में पानी बरसा जाऊं।

मेरा मन भी करता है, जुगनू की तरह जगमगाऊं ।

मेरा मन भी करता है, कुछ रिश्तों में बन्ध जाऊं।

मेरा मन भी करता है,उन रिश्तों की लाज निभाऊं।

मेरा मन भी करता है, मैं पढ़ लिख कर कुछ बन जाऊं                                                        

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SHAHANAJ KHAN

शहनाज़ खान दैनिक दृश्य की सह-संस्थापक एवं सम्पादक है इन्हें लिखने का शौक है। अपनी कविताओं को भी जल्द ही आप तक पहुंचाने का प्रयास करुंगी। धन्यवाद

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