
एक हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे।
ख्वाब सजाये थे माँ ने जिस घर को महल बनाने के उस माँ के ही अरमानों की एक पल में हार करा बैठे ।
हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे।
हे ईश्वर मेरी सुनो अर्चना मत ऐसा परिवार दिये।
जो रक्षा ना कर सके वचन की उसे पैदा होते मार दिये।
तेरे सहारे जी लेंगे हम ऐसा सार बना बैठे।
हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे।
बूढ़ी आत्मा कुड्डहर रहीं हैं अरमानों की बगिया में
अरमानों को दाग लगा दिया मेरी कोख के ठगिया ने
जिसे थकती का सहारा समझा था उस आशा को ही गवां बैठे।
हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे।
पूज्य पिताजी माताजी संस्कार सुलक्ष्ण कहाँ गये।
अंग्रेजी तालीम को पाकर चेहराबुक में समा गये।
पकडम पकडा शब्द खेल नये नये खेल सिखा बैठे।
हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे।
कुछ उम्र साथ भी छोड़ रही कुछ रिश्तों ने संग छोड़ दिया।
जिन उम्मीदों पर करा भरोसा उन उम्मीदों ने तोड़ दिया।
रिश्तों की बुनियाद हिला जीवन का सार गवां बैठे।
हवा चली थी नोटों की हम घर में दीवार बना बैठे।
जिस समां को हमने जन्म दिया उस समां से घर को जला बैठे
@अनवार वेताब
अहले वतन की शान
बदली हुई शदी में हमारी पहचान देखिये।
@अनवर वेताब
हाय वाय हो गयी
हाय वाय हो गई थी जिनसे चलती राह में ।
चैन वैन बेक़रारी दे गयी निगाहों में ।
आँसू
आँसुओ की गलियों में,ख्वाब भी सजाये हैं।
यादों में तुम्हारे ही दिन,तन्हा भी बिताये हैं।
यादें जो ज़हन में हैं भूल जाये हम कैसे।
यादों के वो काफिले सांसो में समाये हैं।
आँसुओ की गलियों में ख्वाब भी सजाये हैं।
यादों में तुम्हारे ही दिन तन्हा भी बिताये हैं।
खोया था जिन्हें हमने चाहत की फिराक में
देख लो उन्हें तुम भी इस भीड़ में वो आये हैं।
आँसुओ की गलियों में ख्वाब भी सजाये हैं।
@अनवार वेताब
अहले वतन की शान
@अनवर वेताब