
सांसों में आज भी सुगंध ,
पुरानी यादों की बहती है ,
शुरू जब हुईं नयी बातें ,
एक प्रसंग अधूरा रह गया।
पड़े देखे कुछ लिखे ख़त पूराने ,
देखा था जो साथ का सपना ,
सपनों को बनाने में ,
एक सपना अधूरा रह गया ।
आज झांकती है कुछ स्मृतियां ,
आंखों में अपनों की ,
अपनों को मिलाने में ,
एक अपना ही रह गया।
शौक़ था पकडके चांद को लाने का ,
चन्द सितारे चुन लाये हम ,
आसमांके बागानों से , मगर चांद हमारा यह गया । महकता हुआ सवेरा आज ,
चहकते हुए पक्षी भी ,
मिलते रहेंगे ज़माने में ,मगर मेरा खुबसूरत ज़माना पीछे रह गया।
कहानियां पढ़ी जब किताबों में ,लगे पन्नों में थे दाग़ , ज़िद्दी जीवन के तरानों के ,मगर जीवन तो एक कहानी बनकर रह गया ।
उम्मीदों का बीज बोया था ,बना पौधा हसरतों का ,ना मिल सका कुछ भी हमें , बन्दिशों का पेड़ बन गया।
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