
संकीर्ण मानसिकता आज लोगों में क्यों दूवघास की तरह फैल रही है।इस मानसिकता से समाज को कैसे बहार निकाला जा सकता है। आखिर संकीर्ण मानसिकता पैदा हो कैसे गयी। जब कोई बेटी पैदा होने से पहले ही उसके भ्रूण को गिरा दिया जाता है या उसे पैदा होते ही जंगली जानवरों के निवाला बनने के लिए फैंक दिया जाता है।
आज एक ऐसी घटना ने मुझे अन्दर तक हिला दिया जब एक सन्देश मेरे मोबाइल के व्हाट्सऐप मैसेज बॉक्स में आया कि एक नवजात शिशु घायल अवस्था में मिला है जिसकी सांसें अभी तक चल रही हैं।
घटना बुलंदशहर के तहसील अनूपशहर के ब्लाक जहांगीराबाद क्षेत्र के गांव चचरई जलीलपुर के जंगलों में बने कोल्ड़ स्टोर के पास हुई बताई जा रही है।
लोकलाज के भय से नवजात शिशु को घायल अवस्था में जंगल में फेंका, स्थानीय लोगो ने घायल नवजात को अस्पताल पहुंचाया।
- नवजात शिशु के सिर पर लगे हुई थी गम्भीर रूप चोटे, जिला अस्पताल के लिए किया गया रेफर
थाना जहांगीराबाद क्षेत्र के गांव जलीलपुर के सामने स्थित कोल्ड स्टोर के समीप एक नवजात शिशु घायल अवस्था में दिखाई दिया। गांव चचरई निवासी कुछ युवक मछलियों के तालाब से मंछलियां पकड़ने के लिए जलीलपुर गांव जा रहे थे। इसी अंतराल में उन्हें बीच रास्ते में उनकी नज़र इस घायल नवजात शिशु पर पड़ी।
घायल नवजात शिशु अपनी नव अवस्था में हिल ढुल रहा था। नज़र पड़ने पर स्थानीय लोग इकट्ठा होने शुरू हुए और घायल नवजात शिशु को जहांगीराबाद स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भर्ती कराया। नवजात शिशु के सिर पर लगी गम्भीर चैंटे नवजात शिशु को काफी गंभीर हालत में पहुंच गई थी ।
हालात को गम्भीरता से लेते ते हुए स्थानीय चिकित्सको ने शिशु को जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। स्थानीय लोगो की चर्चाओं के मुताबिक लोक लाज के भय से नवजात शिशु को मां ने यह कदम उठाया होगा।
लेकिन लोगो का यह भी कहना था कि नवजात बच्ची का होना भी एक कारण रहा होगा।बच्चा और बच्ची, रंग रूप सब उस विधना विधाता की कारिगरी होती है।किस मानव को कौनसा तोफा मिले सब उसकी मर्जी से होता है। क्या दोष था जो उसे ज़िंदगी में आने के साथ ही इस तरह की विषम परिस्थितियों में लाकर छोड़ दिया। ज़िन्दगी शुरू होने के साथ ही उसकी जिंदगी खत्म करने की तरफ कदम उठाने वाले उसके अपनो को क्या सुकून दे पाएगा। मौजूदा परिदृश्य को देकर लोगो ने अज्ञात द्वारा किए गए इस कार्य की निंदा की है।