
आज के काम-काजी दौर में लोगों के पास व्यवसायिक, आर्थिक,सामाजिक, तकनीकी आदि का कार्य भार अधिक होता है जिसके चलते लोग तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं। मस्तिष्क पर अधिक कार्य करने से थकावट महसूस होती रहती है। मस्तिष्क हमारे शरीर का कम्प्यूटर अथवा मुख्य अंग होता है। कार्य तो हमारे शरीर के अन्य हिस्सों द्वारा सम्पादित होता है परंतु किसी भी कार्य को करने में गाइड हमारा मस्तिष्क करता है। मस्तिष्क के द्वारा अत्यधिक मात्रा में कार्य कर लेने से हमारी मस्तिष्क कोशिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे हमारे मस्तिष्क और शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है। फिर हम थकान महसूस करने लगते हैं। कार्य भार अधिक होने पर हम अपने शरीर पर ध्यान नहीं देते और लगातार कार्य करने में लगे रहते हैं जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। इस लिए हमें चाहिए कि अपने खान पान का ध्यान रखें और अपने मन को स्वस्थ रखें, उसे स्फूर्त (ताजा) रखें। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने भी कहा है कि-“स्वस्थ शरीर में ही, स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” इसलिए तन और मन का स्वस्थ रहना एक दूसरे पर निर्भर हैं। यदि हम स्वस्थ हैं तो हमारे पास सबसे बड़ा खजाना है। कहा भी गया है-“Health is Welth”। तनावमुक्त रिक्शे वाला धनी है उस मलमली गद्दे पर लेटे तनावग्रस्त सेठ जी की तुलना में। अपने स्वस्थ्य की देखभाल करना, स्वयं की एक जिम्मेदारी है। वैसे तो अस्वस्थता के अनेक कारण हो सकते हैं परन्तु तनाव सबसे घातक है।जो अनेक कारणो से उत्पन्न हो जाता है। स्वस्थ रहने के लिए क्या-क्या करें आइए जानें,,,,,-“तनाव रहित मन- हमारे अस्वस्थ होने का सबसे बड़ा कारण हमारा तनावग्रस्त रहना है। कामकाज में व्यस्त रहने के कारण हम अपने मस्तिष्क को विश्राम नहीं दे पाते। इसलिए कार्य का दबाव स्वयं पर कम होना चाहिए। सम्भव हो तो अपने कार्यालय का काम घर न लाएं। जरूरी नहीं कि केवल कार्यालय में काम करने वाले ही तनावग्रस्त रहते हैं, और भी अन्य लोग तनावपूर्ण स्थिति में हो सकते हैं। बहुत सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने समय या अन्य अन्य कारण भी तनाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। लेकिन हमारा मानना है कि किसी भी स्थिति में तनावपूर्ण नहीं रहना चाहिए क्योंकि “समस्या का समाधान चिंता से नहीं अपितु चिन्तन से होता है” । किसी भी बात को इतना गम्भीर रूप से न सोचें। अधिक सोचने से केवल अपने शरीर को हानि पहुंचती है और हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वैसे चार्वाक ने भी सही कहा है-“कर्ज लेकर भी घी पियो”।